- विश्व आदिवासी दिवस विशेष : डिंडौरी के 927 में से 899 गांवों में जनजातियों का बसेरा
राम कृष्ण गौतम | डिंडौरी
डिंडौरी आदिवासी बाहुल्य जिला है। इसे जिला बने भले ही महज 18-20 बरस हुए हैं लेकिन इस क्षेत्र में आदिवासियों का इतिहास सदियों पुराना है। आज (9 अगस्त) विश्व आदिवासी दिवस है। इस मौके पर डिंडौरीडॉटनेट आपके सामने जनजातियों की अनोखी छवि प्रस्तुत कर रहा है। डिंडौरी जिले के 927 गांवों में से 899 गांवों में विभिन्न जनजातियां निवास करती हैं। हर जनजाति की अपनी खास पहचान, सभ्यता, संस्कार, आस्था, मान्यता, कला एवं संस्कृति है। ये लोग सदियों से अपनी परंपराओं को निर्बाध रूप से आगे बढ़ा रहे हैं।
चिकित्सा पर्यटन में डिंडौरी के आदिवासियों का योगदान अतुलनीय
डिंडौरी जिला जैव-विविधताओं से संपन्न क्षेत्र है। जिले के कई स्थानाें में दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधियां पाई जाती हैं। इसका एक बड़ा कारण है यहां निवास करने वाले आदिवासी लोग, जो इन औषधियों की पहचान कर इनसे असाध्य रोगों के उपचार के लिए दवाइयां बनाते हैं। उनकी प्राचीन कुशल चिकित्सा पद्धति आज भी जनसमूह को लाभान्वित करती है। जनताजीय लोग प्राचीन चिकित्सा पद्धति में निपुण हैं। उनकी वजह से जिले में चिकित्सा पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है। डिंडौरी अचनकमार अमरकंटक जीवमंडल रिजर्व क्षेत्र में आता है। जिले के आदिवासियों में औषधीय जड़ी-बूटियों का पारंपरिक ज्ञान है। उनकी कुशलता और दुर्लभ जानकारी की वजह से अनेक असाध्य रोगों का उपचार भी संभव है।
दुनियाभर में लोकप्रिय है डिंडौरी का करमा नृत्य
डिंडौरी जिले के आदिवासियों का जीवन अनेक कला और उत्सव से गुलजार है। इनमें चित्रकला, संगीत, नृत्य, गायन आदि शामिल हैं। यहां की प्रत्येक आदिम जनजाति खुद में विशेष और परंपरागत लोक-साहित्य विविधताओं से परिपूर्ण है। इनकी परंपराओं से जुड़े लोकगीत न केवल मध्यप्रदेश बल्कि देश-दुनियाभर में लोकप्रिय हैं। विश्विवख्यात करमा नृत्य डिंडौरी जिले के आदिवासियों की खास पहचान है। करमा नृत्य खुशी जाहिर जताने के लिए करते हैं।
इस आदिवासी गांव के हर घर में एक लोक चित्रकार
डिंडौरी से कुछ ही दूरी पर पाटनगढ़ नाम का एक गांव है। यहां बहुतायत में गोंड परिवार हैं। इसकी खासियत है कि यहां हर घर का एक सदस्य लोक चित्रकार है। यह गांव आदिवासी संस्कृति और विरासत को चित्रित करने वाले विश्व स्तर के चित्रकारों की समृद्ध परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। गोंडी चित्रकला छिपा हुआ खजाना है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी पाटनगढ़ में शिद्दत से सहेजा गया है। गोंड जनजाति, सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है।
जनजातियों की लाजवाब बांस कला और धातु शिल्प
यह जनजातियों की मौजूदगी से ही संभव हो सका कि अयस्क से लौह निष्कर्षण व लोहे से उत्पाद बनाने की कला आज भी डिंडौरी में जीवित है। जब गढ़ा लोहे से बनी कलाकृतियों की बात आती है तो डिंडौरी के आदिवासियों का नाम लिया जाता है। इनकी बनाई बांस की कलाकृतियां भी देश-दुनिया के फाइव-सेवन स्टार होटलों की शोभा बढ़ा रही हैं। घरों में इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए बांस से बने प्रोडक्ट्स डिंडौरी से कई बड़े शहरों में भेजे जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 1982 में शुरू हुआ सफर
इसकी संकल्पना सर्वप्रथम 37 साल पहले तैयार की गई थी। 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की पहल पर मूलनिवासियों का पहला सम्मेलन हुआ था। इसके बाद 1994 में विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World's Indigenous Peoples) मनाने का विचार प्रस्तुत किया गया। वर्तमान में भारत और बांग्लादेश समेत कई देशों में यह दिन खास तौर पर मनाया जाता है। विश्व के तमाम आदिवासियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस पहली बार संयुक्त राष्ट्र की महासभा की ओर से दिसंबर 1994 में घोषित किया गया। इसे हर साल विश्व आदिवासी लोगों (1995-2004) के पहले अंतरराष्ट्रीय दशक के दौरान मनाया जाता है। साल 2004 में असेंबली ने ए डिसैड फाॅर एक्शन एंड डिग्निटी थीम से 2005-2015 से दूसरे अंतरराष्ट्रीय दशक की घोषणा की गई।
हमारे संग बैठ लो... हमारे संग बतिया लो
पहाड़ के पहाड़ी देवता,
वन की वन देवी
दाह के जल देवता
नाग-नागिन...
हमारी खेती देखने वाले,
हमें शांति देने वाले
गांव के ग्राम देवता...
घर के गृह देवता, हमारे बूढ़े-पुरखे
तुम्हारे बनाए रास्ते का हम अनुगमन करते,
हम तुम्हें गुहारते हैं...
हमारे संग बैठ लो,
हमारे संग बतिया लो
एक दोना हड़िया,
एक पत्तल खिचड़ी भात
हमारे संग पी लो...
- डॉ. रामदयाल मुंडा का मुंडारी लोकगीत
आदिवासियों की रुटीन लाइफस्टाइल दुनिया का फैशन स्टेटमेंट
आदिवासियों द्वारा रोजमर्रा के पहनने वाले परिधान और उनकी जीवनशैली से जुड़ीं अन्य चीजें दुनिया के लिए फैशन स्टेटमेंट है। बीते सालों में आयोजित किए गए इंटरनेशनल लंदन फैशन वीक में आदिवासियों से जुड़ी वस्तुओं को नामी-गिरामी मॉडल्स ने रैंप पर प्रस्तुत किया, जिसे पूरी दूनिया ने सराहा था।