रानी अंवतीबाई की वीरगति के बाद रामगढ़ के 2089 गांवों में से 1050 गांवों को निकालकर बना था डिंडौरी
डीडीएन इनपुट डेस्क | 22 मई 1998 को जिला बने डिंडौरी का इतिहास काफी रोचक और भव्य है। 1857 की क्रांति के दौरान इसे अपने रक्त से पुष्पित और पल्लवित करने वाले वीर-वीरांगनाओं की गाथा रोंगटे खड़े कर देने वाली है। डिंडौरी को जिला बनाने की शुरुआत मंडला जिले से डिंडौरी समेत शहपुरा, समनापुर, अमरपुर, बजाग और करंजिया ब्लॉक को अलग कर की गई। इसका और मंडला जिले का इतिहास समान है। सन 1851 अंगेजों ने मंडला को जिला बनाया था। इसमें रामगढ़ की मिलाकर 18 तालुकें थीं। 1951 तक डिंडौरी को रामगढ़ कहा जाता था, जो मंडला की तहसील थी। 1857 की क्रान्ति में रानी अवंतीबाई की वीरगति के बाद रामगढ़ के 2089 गांवों में से 1039 गांव सोहागपुर में मिलाकर रीवा के राजा को सौंपा गया। बाकी 1050 गांव डिंडौरी तहसील का हिस्सा बने रहे। मंडला को 1861 में मध्यप्रांत का हिस्सा बनाया गया। आजादी के बाद भी डिंडौरी, मंडला का हिस्सा बना रहा।
मंडला में 167 साल तक कल्चुरी राजवंश के राजाओं ने किया शासन
गढ़ा मंडला पर अलग-अलग राजवंश के स्वतंत्र राजाओं ने शासन किया। इनमें मडावी गोंड राजा और कलचुरी हैहयवंशी प्रमुख हैं। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार 875 से 1042 ईसवी तक इस क्षेत्र पर कल्चुरी हैहयवंशी राजाओं ने सत्ता चलाई। आज भी कल्चुरी राजाओं द्वारा बनवाए मंदिर और स्मारक यहां मौजूद हैं। डिंडौरी के कुकर्रामठ को कल्चुरी राजा कौकल्यदेव द्वारा 1000 ईसवी के आसपास का बनवाया माना जाता है। मंडला को 1500 ईसवी पहले माहिष्मती नगरी कहा जाता था।
गोंड राजवंश के प्रतापी राजा संग्राम शाह ने 52 गढ़ों पर पाई विजय
मंडला को गढ़ा कटंगा के नाम से भी जाना जाता था। मान्यतानुसार जदूरई (यादवराय) मडावी ने गोंड राजवंश की स्थापना की थी। वंश के सबसे प्रतापी राजा संग्राम शाह ने 52 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, सागर, दमोह तक साम्राज्य विस्तार किया था। महाराजा संग्राम शाह का शासन काल 1482-1532 ईसवी माना जाता है। संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह ने 18 साल शासन किया। उनका विवाह 1542 में चंदेल राजकुमारी रानी दुर्गावती से हुआ। 1545 ईस्वी में रानी ने वीरनारायण को जन्म दिया। 1550 में राजा दलपत शाह की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। रानी दुर्गावती अपने बेटे वीरनारायण के राज्याभिषेक के साथ गढ़ा साम्राज्य का संचालन करने लगीं। रानी दुर्गावती ने 16 वर्ष (1548-1564 ईसवी) तक शासन किया। वीरांगना दुर्गावती ने राज्य और देश की रक्षा के लिए कई लड़ाइयों लड़ीं और जीतीं। रानी दुर्गावती के संपन्न राज्य पर मालवा के शासक बाजबहादुर ने कई बार आक्रमण किया और हारकर वापस गया।
रानी दुर्गावती की सेना ने मार गिराए थे अकबर के 3000 लड़ाके
अकबर भी रानी के राज्य को अपने अधीन करना चाहता था। उसने रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कराया, लेकिन उसे हार का मुंह देखना पड़ा। रानी दुर्गावती के पास सैनिक कम थे, फिर भी उन्होंने मुगल साम्राज्य के 3000 सैनिक को मार गिराया। आसफ खां वापस गया और 24 जून 1564 उसने दोगनी सेना के साथ रानी पर हमला बोला। संकट देख रानी ने अपने बेटे को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। रानी वापस युद्ध स्थल आ गईं। इसी बीच एक तीर रानी की बाजुओं और दूसरा तीर आंख पर लगा। फिर तीसरा तीर उनकी गर्दन पर आ लगा। रानी ने अपने सेनापति आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से रानी की गर्दन काट दे, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पाया। अंत में रानी ने अपनी ही कटार खुद के सीने में घोंप लिया और वीरगति को प्राप्त हुईं। यह युद्ध जबलपुर के बरेला में हुआ था। उस स्थान पर रानी की समाधि स्थित है।
रानी दुर्गावती की वीरगति के बाद राजा चंद्र शाह ने संभाली मंडला की सत्ता
- रानी के जाने के बाद राजा दलपत शाह के भाई और चांदागढ़ के राजा चंद्र शाह को गढ़ा मंडला का राजा बनाया। फिर उनके बेटे मधुकर शाह राजा बने, जिनका कार्यकाल कमजोर रहा। मधुकर के बाद उनके बेटे प्रेम नारायण गद्दी पर बैठे। उन्होंने जीवनभर बुन्देलाओं से संघर्ष किया।
- प्रेम नारायण के बाद पुत्र हिरदेशाह राजा बने। हिरदेशाह ने 1651 से 1667 के बीच रामनगर में मोती महल, रानी का महल और राय भगत की कोठी का निर्माण कराया।
- 1670 में मंडला को गोंडवाना की राजधानी बनाया गया। राजा हिरदेशाह के बाद उनके पुत्र छतर शाह और हरी सिंह में लड़ाई हुई। बाद में छतर सिंह के पुत्र केसरी शाह राजा बने। हरी सिंह ने राजा केसरी शाह की हत्या करवा दी। केसरी शाह के मंत्री और हरी सिंह के बीच युद्ध में हरी सिंह मारा गया।
- केसरीशाह के बाद उनके 7 वर्षीय पुत्र नरेन्द्र शाह को 1691 में राजा बनाया गया। नरेन्द्र शाह ने 1698 में मंडला में पवित्र नर्मदा नदी और बंजर के संगम पर भव्य किला बनवाया।
- मंडला में अंतिम गोंड शासक राजा नाहर शाह थे, जिन्हें मराठों ने बंदी बनाकर खुरई, सागर के किले में रखा था। 1742 से मंडला पर मराठों का वर्चस्व बढ़ने लगा और 1781 में गढ़ा मंडला राज्य सागर के मराठों के अधीन आ गया।
- मंडला के राजमहल में शंकर शाह और रघुनाथ शाह का जन्म हुआ। 1799 में मंडला, नागपुर के भोंसले राजाओं के आधिपत्य में आ गया। 1818 में अंग्रेजों ने मंडला किले पर कब्जा कर लिया, जो 1947 तक कब्जे में ही रहा।