डीडीएन इनपुट डेस्क | कोरोना वायरस को लेकर कई तरह की अफवाहें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। यही नहीं, लोग धड़ल्ले से आंख मूंदकर अफवाहों को बल देने वाले मैसेजेस को फॉरवर्ड भी कर रहे हैं। इन दिनों सोशल प्लेटफॉर्म्स पर हिंदू ग्रंथ श्रीरामचरित मानस की चौपाई का एक फोटो वायरल हो रहा है, जिसमें चमगादड़ों के जरिए कोरोना वायरस के फैलने और समाधि यानि लॉकडाउन को उपाय के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर रामचरित मानस के पेज का फोटो शेयर कर कहा जा रहा है कि रामायण के दोहा नंबर 120 में लिखा है जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी पाप बढ़ जाएंगे, तब चमगादड़ अवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएगी और लोग मरेंगे। दोहा नंबर 121 में लिखा है कि एक बीमारी जिससे लोग मरेंगे, उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन, दान और समाधि में रहना यानी लॉकडाउन। आइए हम आपको बताते हैं इस वायरल अफवाह की हकीकत..!
बनारस के ज्योतिषाचार्य और बीएचयू के प्रोफेसर ने बताया वायरल मैसेज का सच
इस मैसेज के वायरल होने पर देश के कुछ मीडिया संस्थानों ने मामले की पड़ताल की तो दावा गलत साबित हुआ। बनारस के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश मिश्रा ने इस वायरल तथ्य की सच्चाई उजागर की है। उन्होंने बताया कि चौपाई में मानस रोग की बात की गई है। इसमें कोरोना वायरस के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। वायरल हो रही चौपाई का असल अर्थ है- जो लोगों की निंदा करता है, वह दूसरे जन्म में चमगादड़ बनता है। इसके अलावा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर शार्दिंदु कुमार तिवारी ने भी वायरल पोस्ट की हकीकत बताई है। डॉ. तिवारी ने बताया, ये चौपाईयां श्रीरामचरित मानस के उत्तर कांड में मौजदू हैं, लेकिन इसमें कहीं भी कोरोना वायरस का जिक्र नहीं है। चौपाई में बताया गया है कि लोग अपने कर्मों के अनुसार दूसरे जन्म में क्या बनेंगे। एक लाइन के मुताबिक, जो दूसरों की निंदा करता है, वह अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा। हालांकि डॉ. तिवारी ने यह भी साफ किया कि, दोहे के अनुसार एक रोग के कारण लोगों की मौत होगी, लेकिन बीमारी चमगादड़ के कारण फैलेगी, ऐसा वर्णन कहीं नहीं है।
श्रीरामचरित मानस के विशिष्ट संस्करण में देख सकते हैं दोहा-चौपाई का हिंदी अर्थ
वायरल चौपाई और दोहा का असल हिंदी अर्थ गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस के विशिष्ट संस्करण में भी देख सकते हैं। चौपाई इस प्रकार है- सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होई अवतरहीं।। सुनहू तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहीं सब लोगा।। इसका हिंदी अर्थ है- जो मूर्ख मनुष्य सबकी निंदा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं। हे तात! अब मानस-रोग सुनिए, जिनसे सब लाेग दु:ख पाया करते हैं।
वहीं, दोहा इस प्रकार है- एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि। पीड़हिं संतत जीव कहुं सो किमि लहै समाधि।। इसका अर्थ है- एक ही रोग के वश होकर मनुष्य मर जाते हैं, फिर ये तो बहुत से असाध्य रोग हैं। ये जीव को निरंतर कष्ट देते रहते हैं, ऐसी दशा में वह समाधि (शांति) कैसे प्राप्त करे?