- अदम्य शौर्य और साहस की मिसाल रानी दुर्गावती बलिदान दिवस विशेष
¶¶ विश्व इतिहास महापराक्रमी रानी दुर्गावती की शौर्यगाथाओं से भरा हुआ है। आज उनके बलिदान दिवस पर डिंडौरीडॉटनेट आपको रानीजी के जीवन के उस पहलू से रूबरू करा रहा है, जिसमें उनके अदम्य साहस और शौर्य की अद्भुत झलक मिलती है। लेख में प्रयुक्त प्रसंग और तस्वीरें ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े दस्तावेजों और कुछ संदर्भ इंटरनेट से हैं। एक हिस्सा नागपुर की लेखिका संध्या शर्मा के सौजन्य से भी है। डिंडौरीडॉटनेट रानीजी को भावभीनी श्रद्धासुमन अर्पित करता है। 😓🌷💐
रणभूमि में विश्व की प्रथम महिला महावीरांगना रानी दुर्गावती कुशल योद्धा के साथ न्यायप्रिय प्रशासक व महान जननायक भी थीं। अपने समय में उन्होंने जो जनकल्याण के कार्य किए वो आज के लिए उदाहरण हैं। रानी दुर्गावती अपनी मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए प्राण न्यौछावर कर अमर हो गईं। उन्होंने जाति और धर्म से परे देश प्रेम को सर्वोपरि माना। वीरांगना ने अपनी प्रजा की भलाई एवं कला संस्कृति के विकास के लिये अनेक कार्य किए।
राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं रानीजी
रानी दुर्गावती का जन्म 05 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल के घर हुआ था। वह अपने पिता की इकलौती संतान थीं। दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। दुर्गावती चंदेल वंश की थीं और कहा जाता है कि इनके वंशजों ने ही खजुराहो मंदिरों का निर्माण कराया था और महमूद गज़नी के आगमन को भारत में रोका था, लेकिन 16वीं शताब्दी आते-आते चंदेल वंश की ताकत बिखरने लगी थी।
1556 में सुल्तान बाज बहादुर को किया बुरी तरह परास्त
सन् 1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया, लेकिन रानी दुर्गावती के साहस के सामने वह बुरी तरह पराजित हुआ, पर यह शांति कुछ ही समय की थी। दरअसल, 1562 में अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया था। इसके अलावा रीवा पर आसफ खान का राज हो गया। अब मालवा और रेवा, दोनों की ही सीमाएं गोंडवाना को छूती थीं तो ऐसे में अनुमानित था कि मुगल साम्राज्य गोंडवाना को भी अपने में विलय करने की कोशिश करेगा।
सैनिक कम पड़े लेकिन हौसले में जरा भी कमी नहीं आई
¶¶ 1564 में अकबर के रिश्तेदार आसफ खां ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने खुद सेना का मोर्चा सम्भाला। हालांकि, उनकी सेना छोटी थी, लेकिन उसने रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कराया, लेकिन उसे हार का मुंह देखना पड़ा। रानी दुर्गावती के पास सैनिक कम थे, फिर भी उन्होंने मुगल साम्राज्य के 3000 सैनिकों को मार गिराया। आसफ खां वापस गया और 24 जून 1564 उसने दोगुनी सेना के साथ रानी पर हमला बोला। संकट देख रानी ने अपने बेटे को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। रानी वापस युद्ध स्थल आ गईं। इसी बीच एक तीर रानी की बाजुओं और दूसरा तीर आंख पर लगा। फिर तीसरा तीर उनकी गर्दन पर आ लगा। रानी ने अपने सेनापति आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से रानी की गर्दन काट दे, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पाया। अंत में रानी ने अपनी ही कटार खुद के सीने में घोंप लिया और वीरगति को प्राप्त हुईं। यह युद्ध जबलपुर के बरेला में हुआ था। उस स्थान पर रानी की समाधि स्थित है।