- लेखक : डॉ. दिग्विजय सिंह मरावी, जिला सचिव, जय आदिवासी युवा शक्ति संस्था (जयस)
सभी बहनों, भाइयों, काका- काकी, दादा-दादी, मामा-फुआ और विद्यार्थी साथियों को सादर सेवा जोहार। जय आदिवासी। जय जयस। जय संविधान! दुनियाभर में 476.6 मिलियन आदिवासी जनता के अभिन्न सदस्य मेरे समाज के प्रत्येक नागरिक को नमन। प्रणाम। उलगुलानी जोहार। विश्व के 90 से अधिक राष्ट्रों में निवासरत आदिवासी जनता को डिंडौरी की धरती से प्रणाम! भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में अपनी विशेष संस्कृति को संजोकर प्रकृति के अनूकुल अपना जीवन-यापन करते हुए 4000 से अधिक भाषा-बोली से खुद को प्रकृति की संरक्षक मानकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विश्व के आदिवासी समाज का हिस्सा होने पर हमें गर्व है। हमें अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है, लेकिन हजारों मील की दूरी के बाद भी हमारे और विदेश के तमाम आदिवासियों मे आधारभूत समानता है। जैव-विविधता और प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली के कारण आज सम्पूर्ण विश्व आदिवासी सभ्यता को अपनाने और बचाने में जुटी है। इसी कड़ी में लगभग 193 राष्ट्रों में 09 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने और दुनिया को ग्लोबल वाॅर्मिंग से बचाने के लिए हमारी संस्कृति ही कारगर है। इसका हम सबको ज्ञान होना चाहिए और गर्व होना चाहिए, परंतु शिक्षा के अभाव और दूरस्थ क्षेत्रों में निवाश करने के कारण हम संयुक्त राष्ट्र संघ और भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार हासिल करने में आज तक असफल हैं। इसका मुख्य कारण है कि हम शिक्षा से दूर रहे हैं। साथ ही हमारे प्रतिनिधियों ने इस पर जोर नहीं दिया। स्वास्थ्य, शिक्षा सहित अन्य मानवीय जरूरतों के अभाव में हम अपनी संस्कृति को बचाकर जरूर रखें हैं लेकिन आदिवासी समाज का सभी क्षेत्रों में शोषण होता आ रहा है। इसके लिए हमें आवाज उठाते रहना है क्योंकि संघर्ष का पर्याय बन चुके आदिवासी समुदाय को अब संस्कृति और आधुनिकता में सामजस्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ना होगा। हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान और स्वाभिमान है, लेकिन सामंजस्य से स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में हमें अपनी पहचान बनानी होगी, इसलिए हमें शिक्षा को हथियार बनाना होगा। शिक्षा ही बदलाव का प्रमुख साधन है। हमें एक ऐसी शिक्षा की नींव रखनी पडे़गी, जो सरकार पर आश्रित न होते हुए भी शैक्षणिक क्रांति लाने में सक्षम हो। इसके लिए बिखरे हुए समाज को संगठित होकर हर क्षेत्र में उलगुलानी शुरुआत करनी पडे़गी। इतिहास गवाह है कि हमारे पूर्वजों ने हमेशा अस्तित्व के लिए संघर्ष किया है, जो हमारे लिए प्रेरणा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ भारत के संविधान मे वर्णित पांचवीं और छठवीं अनुसूची लागू कराने के लिए हमें साझा संघर्ष करने की जरूरत है। पांचवीं अनुसूची के अक्षरशः पालन होने मात्र से संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकांश प्रावधानों का समुदाय को लाभ मिलना सुनिश्चित हो जाएगा।
शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तीकरण के लिए हमें साथ मिलकर चलने की जरूरत है ताकि वर्तमान परिस्थितियों में हम अपनी भूमिका को मजबूती से साबित कर सकें। आर्थिक युग के रूप पहचान बना चुकी 21वीं सदी में हमें आर्थिक सशक्तीकरण के लिए सामूहिक कदम उठाने होंगे। हम छोटे-छोटे ही सही, लेकिन स्वयं का व्ययसाय स्थापित करें ताकि पूंजीवाद को परास्त करने में मदद मिल सके। पूंजीवाद ही आज शोषण का सबसे बड़ा कारण है, जो आदिवासियों के अस्तित्व को समाप्त कर रहा है। आर्थिक सशक्तीकरण से हम निर्णायक भूमिका में पहुंच सकते हैं और खुद के लिए निर्णय ले सकते हैं। जयस डिंडौरी परिवार इसी मिशन के साथ व्ययसाय को बढ़ावा दे रहा है। हम एक महीने में जयस युवाओं के लिए पांच व्यवसाय स्थापित कर चुके हैं, जो ऐतिहासिक है। भविष्य में व्यवसाय के लिए प्रेरित करते हुए सैकड़ों युवाओं को आत्मनिर्भर बनाकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान सुनिश्चित करने का लक्ष्य जयस डिंडौरी ने रखा है। इससे हमारे समाज के युवाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और समाज मजबूत होगा।
हमारा मानना है कि विश्व आदिवासी दिवस सिर्फ मंचों पर भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नारों तक ही सीमित न रहे बल्कि जमीन पर भी साकार हो और हम अधिकारों की लड़ाई मजबूती से लड़ सकें। हम अपेक्षा करते है कि आदिवासी दिवस पर आप स्थानीय कार्यक्रम आयोजित करते हुए साथ आगे बढ़ने का संकल्प लें। 09 अगस्त सिर्फ एक संवैधानिक दिवस न होकर हम सबके लिए एक उत्सव है, एक पर्व है, एक प्रयास है, एक प्रेरणा है। साथ ही संकल्प लेने का पावन दिन है कि हम समाज के लिए आपसी मतभेद भुलाकर हमारी समृद्धि के लिए कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं के प्रयासों को समर्थन देंगे। यह पर्व है उन महापुरुषों के बलिदान और आदर्शों को याद करने का, जिन्होंने हमारे अधिकारों-अस्तित्व की रक्षा के लिए जान गंवा दी।
अंत में...
क्रांति की चिंगारी जल चुकी है, ज्वाला का रूप जरा हम दे जाएं
ना बुझे संघर्ष की ज्वाला, जन-जन तक संदेश पहुचाएं
दीन-हीन खो चुके हैं आत्मविश्वास, उनका हम आत्मविश्वास जगाएं
प्रयास हो सबका पारदर्शी, आओ सब आपसी रंजिश मिटाएं
जवानी के पावन बसंत मे व्यक्तित्व ऐसा बनाएं,
ये जग प्रशंसा और अनुसरण को बाध्य हो जाए
इन्हीं उलगुलानी उम्मीदों के साथ संघर्ष के साथी मीडियाकर्मियो काे प्राकृतिक आदिवासी समाज की ओर से आभार सेवा जोहार!देश के सभी नागरिकों को आदिवासियों की ओर से विश्व आदिवासी दिवश की बधाई और शुभकामनाएं..!
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)