डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी/नई दिल्ली
आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले के पाटनगढ़ की सुपरिचित लोक चित्रकार दुर्गाबाई व्याम को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को नई दिल्ली में आयोजित भव्य समारोह में 'पद्मश्री' सम्मान प्रदान किया। बीते 25 जनवरी को दुर्गा समेत ग्राम धुरकुटा के सेवानिवृत्त शिक्षक व लोकनर्तक अर्जुन सिंह धुर्वे को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' के लिए चुना गया था। हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित समारोह के दौरान दुर्गा व्याम को यह सम्मान राष्ट्रपति ने प्रदान किया। जिले को गौरवांवित करने वाली दुर्गा बाई को तमाम लोक कलाकारों, आदिवासी समुदाय और गणमान्य नागरिकों ने दिली मुबारकबाद दी है। दुर्गा ने सीमित साधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद खुद को साबित किया। उन्होंने कठिन संघर्ष की चुनौतियों को पार करते हुए जिले की लोककला को दुनियाभर में प्रसारित किया। उनकी अब तक की जीवनयात्रा में पति सुभाष सिंह व्याम का अहम योगदान है। उनकी बेटी रोशनी व्याम भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की मॉडर्न ट्राइबल आर्टिस्ट हैं। रोशनी की पेंटिंग्स भारत के बड़े-बड़े शहरों सहित यूरोप के कई देशों, विशेषकर पेरिस के मेट्रो स्टेशन की शोभा बढ़ा चुकी हैं। रोशनी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) बेंगलुरु से पासआउट हैं।
कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन लोकचित्रकारी में बड़े-बड़ों को पीछे छोड़ा
डिंडौरी जिले के छोटे से गांव की दुर्गाबाई कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन लोकचित्रकारी में बड़े-बड़ों को पीछे छोड़ दिया है। अपनी अनोखी कला के बल पर 'पद्मश्री' तक प्राप्त कर लिया। वह आदिवासी वर्ग के लिए मॉडल के रूप में उभरी हैं। वर्ष 1974 में अमरकंटक के पास जिले के ग्राम बरबसपुर निवासी चमरू सिंह परस्ते के घर पर जन्मी दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और शिक्षा के उचित इंतजाम नहीं मिलने की वजह से काफी पिछड़ गईं, लेकिन आगे बढ़ने की चाह के चलते चित्रकारी को अपनी मंजिल पाने का उचित माध्यम बनाया। वह गोंडी भित्ति चित्र के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाती गईं। इसी कला के कारण उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' के लिए चुना गया। दुर्गाबाई ने डिंडौरीडॉटनेट को बताया कि उनकी जीवनयात्रा और संघर्ष के दिनों में पति सुभाष सिंह व्याम ने अहम भूमिका निभाई। वह 06 साल की उम्र से ही चित्रकारी में जुट गई थीं। इसी अभिरुचि ने उन्हें वर्ष 1996 में भोपाल पहुंचाया। यहां उन्हें अपनी बेमिसाल कला का प्रदर्शन और पहचान बनाने का मौका भी मिला। उन्होंने बताया कि वह भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन पर पुस्तक भी लिख चुकी हैं, जो 11 भाषाओं में प्रकाशित हुई है। पति सुभाष भी प्राइवेट नौकरी छोड़कर भोपाल के जनजाति संग्रहालय से जुड़कर उनके साथ मां नर्मदा को लेकर चलाए जा रहे अभियान में मदद कर रहे हैं।